वर्तमान चुनाव परिणामः सुलगते प्रश्न, तलाशते उत्तर

वर्तमान राज्यों के चुनाव परिणाम सभी को अचम्भित कर गये। कुछ तो गलत हुआ है कि उन राज्यों की जनता को बदलाव लाना पड़ा। मोदी जी देश को आगे ले जाने का जो स्वप्न देख रहे हैं वह अधूरा न रह जाय।


कुछ यक्ष प्रश्नः


मोदी जी अगर अच्छा कर रहे हैं तो उसका अनुभव जनता को क्यों नहीं हो रहा है?


क्यों त्रस्त है उद्योगपति, व्यापारी, किसान, श्रमिक व आम आदमी?


क्या वादे पूरे नहीं हो रहे हैं? क्या देश प्रगति नहीं कर रहा?


यदि प्रगति कर रहा है तो उसका परिणाम क्यों नहीं जनता को महसूस हो रहा? क्या काँग्रेस अब अच्छी लगने लग गयी?


कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी जी ने राहुल की कुछ ज्यादा ही खिंचाई कर दी कि उससे जनता की सहानुभूति उनकी तरफ हो गयीक्या भाजपा के नेताओं की भाषा तथा आक्षेप जनता को पसंद नहीं आये? कहीं मोदी जी व अमित शाह के व्यवहार में अहम् परिलक्षित होने से तो अहमियत कम नहीं हो गयी? कहीं ऐसा तो नहीं गाँधी परिवार पर लगे तथाकथित भष्टाचारों को प्रमाणित करने में मोदी सरकार नाकाम रही? 4.5 वर्ष में राम मन्दिर के मुद्दे पर कोई प्रगति न होना ही तो कहीं नाराजगी का कारण नहीं? कहीं यह कारण तो नहीं कि मोदी जी ने सत्ता का केन्द्रीयकरण कर दिया? राफेल डील के कारण लगे भ्रष्टाचार के आरोप तो कहीं हार का कारण नहीं? कहीं काँग्रेस मुसलमानों के साथ सभी हिन्दुओं को मोदी जी से डराने में सफल हो गयी? कहीं GDP के आँकड़ों पर जनता अविश्वास तो नहीं कर रही? कहीं पड़ोसी देशों ने तो चुनाव को प्रभावित नहीं किया? कहीं मोदी जी द्वारा अपने ही बड़ों के प्रति विनय विवेक में कमी रखना तो कारण नहीं? कहीं जुमलेबाजी के कारण जनता क्रोधित तो नहीं हो गयी? कहीं पेट्रौल के दामों में वृद्धि व रूपये का अवमूल्यन तो कारण नहीं? कहीं जी.एस.टी. और नोटबंदी का योजनाबद्ध न होना तो एक बड़ा कारण नहीं? कहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध सरकार द्वारा एस.सी./एस.टी. एक्ट में बदलाव से सवर्णो में उपजा रोष तो इसका कारण नहीं? कहीं एस.सी./एस.टी. एक्ट में बदलाव के कारण सवर्णो ने नोटा का उपयोग तो नहीं किया? हर संस्था तथा पदों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोगों को बिठाना तो कारण नहीं? न्यायाधीशों, सी.बी.आई व रिज़र्व बैंक के शीर्षस्थ लोगों के साथ हुआ व्यवहार तो कारण नहीं बन रहा? जनता ने जिनके विरुद्ध अपना मत दिया उन्हें पदों पर बिठाना तो कहीं जनता की नाराजगी का कारण नहीं? निरंकुश अफसरशाही ने व्यापारियों, उद्योगपतियों, साधारण जन सभी को विभिन्न बिन्दुओं से प्रताड़ित किया, जिसके फलस्वरूप अफसरशाही में भ्रष्टाचार बेहिसाब फैल रहा है एवं सभी त्रस्त हो गये। ऐसे भ्रष्टाचार को रोकने में नाकामयाबी तो कहीं एक बड़ा कारण नहीं? 5. नाई (श्री साहिबचन्द, बीदर-कर्नाटका निवासी नाम दिया भाई साहिब सिंह)। सभी को सिंह की उपाधी दी गयी ताकि जुल्म के विरुद्ध दहाड सके व आभूषण के तौर पर केश, कड़ा, कच्छा, कंघा व कृपाण रखने को कहा गया ताकि रक्षक के तौर पर पहचान बन सके। सिख / खालसा को आजकल एक अलग पंथ के रूप में पहचान भले ही मिली हो लेकिन मूल में वे हिन्दू ही हैं, हिन्दुओं के लिये हैं व हिन्दू गौरव है। हिन्दू धर्म नहीं वरन् उत्कृष्ट संस्कृति है। जैसे जैन व बौद्ध की अलग धर्म के रूप में पहचान भले ही हो लेकिन मूलरूप में हिन्दू संस्कृति के अंग ही हैं। छोटी सोच व कुटिल चाल के कारण हिन्दुओं में भेद पैदा किये गये व उन्हें टुकड़ों में बाँट कर कमजोर किया गया। जैन, सनातन / वैदिक, बौद्ध, सिख ये सभी हिन्दू ही हैं। आज के राजनीतिज्ञ तो हिन्दुओं को छोटी-छोटी जात-पात में बाँट कर उसके और टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं। समय रहते नहीं संभले तो हिन्दू संस्कृति के लिए इसके परिणाम बहुत घातक होंगे।